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रमजान का इतिहास ,हिंदी जाणकारी,ईद-उल-फितर ,भाषण ,सूत्रसंचालन!

रमजान का इतिहास ,हिंदी जाणकारी,ईद-उल-फितर ,भाषण ,सूत्रसंचालन!




रमजान का माह एक बहुत ही पवित्र माह माना जाता है। यह अल्लाह की इबादत करने के लिहाज से एक बहुत खास महीना होता है। इस बार रमजान की शुरुआत 7 मई से हो रही है। रोजे अगले 30 दिनों तक चलेंगे। इसके बाद मुस्लिम कैलेंडर के अनुसार, मुस्लिम शव्वाल माह की पहली तारीख को ईद-उल-फितर का त्योहार यानि ईद का त्योहार मनाया जाएगा। ईद किस दिन पड़ेगी इसका निर्धारण भी चांद देखकर किया जाता है।

इस्लाम में रमजान के महीने को तीन भागों में बांटा गया है। प्रत्येक हिस्से में दस-दस दिन रखे गए हैं। हर दस दिन के हिस्से को ‘अशरा’ कहा जाता है। कुरान के दूसरे पारे के आयत- 183 में रोजा रखना हर मुसलमान के लिए जरूरी बताया गया है। रोजा सिर्फ भूखे, प्यासे रहने का नाम नहीं बल्कि खुद पर नियंत्रण करना, अश्लील या गलत काम से बचना है। साथ ही कुरान में अल्लाह ने फरमाया कि रोजा तुम्हारे ऊपर इसलिए फर्ज किया है, ताकि तुम खुदा से डरने वाले बनो और खुदा से डरने का मतलब यह है कि इंसान अपने अंदर विनम्रता पैदा करे।

मुस्लिम धर्म की मान्‍यता के अनुसार, पैगंबर हजरत मुहम्मद ने बद्र के युद्ध में जीत हासिल की थी, इसी खुशी को में ईद के पर्व के रूप में मनाया जाता है। ऐसा मानते हैं कि पहली बार ईद-उल-फितर 624 ईस्वी में मनाई गई थी। रमजान के दौरान मुस्लिम धर्म के लोग 30 दिन तक उपवास रखते हैं। इन्हें रोजा कहा जाता है। ईद के दिन नमाज से पहले गरीबों में फितरा(दान-दक्षिणा) बांटने का रिवाज है। वैसे तो रोजे के दौरान भी दान-दक्षिणा दिए जाने की परंपरा है जिससे अल्लाह का आर्शीवाद मिलता है। यह दान जकात के नाम से जाना जाता है, जकात रोजे रखने के दौरान भी दी जाती है लेकिन ईद के दिन नमाज से पहले गरीबों में फितरा बांटा जाता है जिस कारण ईद को ईद-उल-फितर कहा जाता है।

रमजान का यह है इतिहास :


मुस्लिम समुदाय में रमजान इसलिए भी खास है क्योंकि इसी दौरान इस्लामिक पैगंबर मोहम्मद के सामने कुरान की पहली झलक पेश की गई थी। लिहाजा रमजान को कुरान के जश्न का भी मौका माना जाता है। रमजान के दौरान मुस्लिम समुदाय के लोग पूरे एक महीने रोजा रखते हैं। इस्लाम धर्म में रोजा को फर्ध यानि भगवान का शुक्रिया अदा करने का त्योहार माना गया है। रोजे रखने वालों को रोजेदार माना जाता है। इस दौरान कुछ लोगों जैसे  बुजुर्ग एवं बीमार व्यक्ति, यात्रा करने वाला व्यक्ति, गर्भावती महिला और मासिक धर्म होने पर इन्हें रोजा रखने की बाध्यता नहीं होती है।

गर्मी में पड़ने पर होता है विशेष महत्व

माना जाता है कि रमजान के गर्मियों में पड़ने का एक खास और अलग ही महत्व है। मान्यता है कि आफताब(सूरज) की गर्मी में रोजे रखकर रोजेदार अपने पाप खत्म करते हैं। मन पवित्र हो जाता है और दिल से बुरे विचार खत्म हो जाते हैं। रमजान महीना ईद-उल-फितर से खत्म होता है। इसे शव्वाल(चंद्र मास) का पहला दिन भी कहते हैं। इस दिन सभी रोजेदार नए कपड़े पहनकर मस्जिदों और ईदगाह में जाते हैं। वहां वे रमजान की आखिरी नमाज पढ़कर खुदा का शुक्रिया अदा करते हैं, साथ ही एक दूसरे को गले मिलकर बधाई देते हैं।

क्यों तोड़ते हैं खजूर से रोजा

रोजे के दौरान रोजेदार पूरे दिन बिना कुछ खाए पिए रहते हैं। हालांकि रोजे के दौरान हर दिन सुबह सूरज उगने से पहले कुछ खाना खाया जाता है, यह सेहरी कहलाता है।  शाम के समय रोजेदार रोजा खोलने या तोड़ने के लिए जो खाना खाते हैं उसे इफ्तारी कहते हैं। रोजेदार खजूर खाकर रोजा तोड़ते हैं। एक इस्लामिक साहित्य के मुताबिक अल्लाह के एक दूत को अपना रोजा खजूर से तोड़ने की बात लिखी गई है। इसी के आधार पर सभी रोजेदार खजूर खाकर सेहरी एवं इफ्तार मनाते हैं। इसके अलावा खजूर लीवर, पेट की दिक्कत व कमजोरी जैसी अन्य बीमारियों को ठीक करता है, इसलिए रोजेदार इसे खाते हैं।


HAQ BAAT-SABKE SATH

Ramzan Ka ( No1) ☆इतिहास
अल्लाह के हुक्म से सन् 2 हिजरी से मुसलमानों पर रोजे अनिवार्य किए गए। इसका महत्व इसलिए बहुत ज्यादा है क्योंकि रमजान में शब-ए-कद्र के दौरान अल्लाह ने कुरान जैसी नेमत किताब दी।

( No2 )☆☆सहरी, इफ्तार और तरावी

रमजान के दिनों में सहरी खाने का वक्त सूरज निकलने से करीब डेढ़ घंटे पहले का होता है। सहरी खाने के बाद आपका रोजा शुरू हो जाता है। पूरे दिन आप कुछ भी खा-पी नहीं सकते। शाम को तय वक्त पर इफ्तार कर रोजा खोला जाता है।रात को इशा की नमाज (करीब 9 बजे) के बाद तरावी (खास इबादत) की नमाज अदा की जाती है। ईद का चांद 29वे दिन या 30वें दिन दिखता है, उसके अगले दिन ईद मनाई जाती है।

(No3 )☆☆☆ रोजे से छूट किसे

-बीमार हो या बीमारी बढ़ने का डर हो। लेकिन इसमें डॉक्टर की सलाह जरूरी। यानी अगर डॉक्टर कहता है कि आपके रोजा रखने का असर बीमारी पर पड़ेगा तो रोजा न रखने की छूट है।
-अगर आप यात्रा पर हैं, प्रेग्नेंट महिला और जो मां अपने बच्चे को दूध पिलाती है उन्हें भी इससे छूट है।
-बहुत ज्यादा बूढ़े लोगों को भी इससे छूट रहती है।

(No4 )☆☆☆☆ दान सबसे महत्वपूर्ण

रमजान में जकात (दान) का खास महत्व है। अगर किसी के पास साल भर उसकी जरूरत से अलग साढ़े 52 तोला चांदी या उसके बराबर का कैश या कीमती सामान है तो उसका ढाई फीसदी जकात यानी दान के रूप में गरीब या जरूरतमंद मुस्लिम को दिया जाना चाहिए। ईद पर फितरा (एक तरह का दान) हर मुसलमान को करना चाहिए। इसमें 2 किलो 45 ग्राम गेहूं की कीमत तक की रकम गरीबों में दान की जानी चाहिए।

( No 5 )☆☆☆☆☆रोजे के मायने

रोजा को अरबी भाषा में सौम कहा जाता है। सौम का मतलब होता है रुकना, ठहरना यानी खुद पर नियंत्रण या काबू करना। यह वो महीना है जब हम भूख को शिद्दत से महसूस करते हैं और सोचते हैं कि एक गरीब इंसान को भूख लगने पर कैसा महसूस करता होगा। बीमार इंसान जो दौलत होते हुए भी कुछ खा नहीं सकता, उसकी बेबसी को महसूस करते हैं।

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